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Nov 2, 2016

यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल में रहता.
सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता.
बंदी जन गुण गाते रहते, दरवाजे पर मेरे.
 प्रतिदिन नौबत बजती रहती, संध्या और सवेरे.
मेरे वन में सिह घूमते, मोर नाचते आँगन.
मेरे बागों में कोयलिया, बरसाती मधु रस-कण.
यदि होता किन्नर नरेश मैं, शाही वस्त्र पहनकर.
 हीरे, पन्ने, मोती माणिक, मणियों से सजधज कर.
बाँध खडग तलवार सात घोड़ों के रथ पर चढ़ता.
बड़े सवेरे ही किन्नर के राजमार्ग पर चलता.
राज महल से धीमे धीमे आती देख सवारी.
रूक जाते पथ, दर्शन करने प्रजा उमड़ती सारी.
जय किन्नर नरेश की जय हो, के नारे लग जाते.
हर्षित होकर मुझ पर सारे, लोग फूल बरसाते.
सूरज के रथ सा मेरा रथ आगे बढ़ता जाता.
बड़े गर्व से अपना वैभव, निरख-निरख सुख पाता.
तब लगता मेरी ही हैं ये शीतल मंद हवाऍ.
झरते हुए दूधिया झरने, इठलाती सरिताएँ.
हिम से ढ़की हुई चाँदी सी, पर्वत की मालाएँ.
फेन रहित सागर, उसकी लहरें करतीं क्रीड़ाएँ.
दिवस सुनहरे, रात रूपहली ऊषा-साँझ की लाती.
छन-छनकर पत्तों से बुनती हुई चाँदनी जाली.
                                                                                                                           
    - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

आ घिर आई दई मारी घटा कारी


आ घिर आई दई मारी घटा कारी।
बन बोलन लागे मोर
दैया री बन बोलन लागे मोर।
रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज बन बोलन लागे मोर।
कोयल बोले डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
आज बन बोलन लागे मोर।
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर।
आज बन बोलन लागे मोर।

Mar 2, 2013

Kaurav Kaun...Kaun Pandav

कौरव कौन...कौन पांडव
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है|
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है|

-- अटल बिहारी वाजपेयी

Kya Khoya Kya Paya Jag Me

क्या खोया, क्या पाया जग में


क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!

जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

 
-- अटल बिहारी वाजपेयी