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Sep 10, 2012

Maine Shanti Nahi Jani Hai

मैंने शांति नहीं जानी है
मैंने   शांति  नहीं  जानी  है
त्रुटी  कुछ  है  मेरे  अन्दर  भी
त्रुटी  कुछ  है  मेरे  बाहर  भी
दोनों  को  त्रुटी  हीन  बनाने  की  मैंने  मन  में  ठानी  है
मैंने  शांति  नहीं  मानी  है

आयु  बिता  दी  यत्नों  में  लग
उसी  जगह  मैं, उसी  जगह  लग
कभी  कभी  सोचा  करता  अब, क्या  मैंने  की  नादानी  है
मैंने  शांति  नहीं  मानी  है

पर  निराश  होऊं  किस  कारण
क्या  पर्याप्त  नहीं  आश्वासन
दुनिया  से  मानी , अपने  से  मैंने  हार  नहीं  मानी  है
मैंने  शांति  नहीं  मानी  है

-- हरिवंश राय बच्चन

Aug 24, 2012

Fir Udd Chala

फिर उड़ चला पंछी ,एक नए आशियाने की तरफ

फिर  उड़  चला  पंछी  ,एक  नए  आशियाने  की  तरफ
ज़िन्दगी  ने  फिर  एक ,नयी  करवट  ले  ली .
अभी  तक  जहाँ  हम  खुद  को  महफूज़  समझते  थे
वो  जगह  डर  ओ  ज़ज्बात  की  आहो  ने  ले  ली
याद  आयेगा  ये  गुलशन ,ये  सवेरा  किसी  एक  दिन

सुकून   की  यादें  मुझसे  तो  वक़्त  की  टिक  टिक  ने  ले  ली
जाने  की  ख़ुशी  है  या  बिछड़ने  का  गम ,
आंसू  और  हँसी  तो  इस  खामोश  धड़कन  ने  ले  ली
याद  आऊं कभी  तो  आंसू  बहा  देना
क्या  करू ,मेरे  आंसुओ  की  जगह  काम  की  जल्दी  ने  ले  ली
फिर  उड़  चला  पंछी ,एक  नए  आशियाने  की  तरफ .
ज़िन्दगी  ने  फिर  एक ,नयी  करवट  ले  ली .
-- ब्रीजेन्द्र प्रताप सिंह

Jul 27, 2012

Abhi N Hoga Mera Ant

अभी न होगा मेरा अन्त
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,

मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।
--सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

Maun

बैठ लें कुछ देर
बैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।
--सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 

Todti Patthar

तोड़ती पत्थर

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर --
वह तोड़ती पत्थर ।

कोई न छायादार
पेड़, वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार बार प्रहार;
सामने तरु - मालिका, अट्टालिका, प्राकार ।

चड़ रही थी धूप
गरमियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गयी

प्रायः हुई दुपहर,
वह तोड़ती पत्थर ।

देखते देखा, मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा छिन्न-तार
देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोयी नहीं
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार ।
एक छन के बाद वह काँपी सुघर,
दुलक माथे से गिरे सीकार,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा --
"मैं तोड़ती पत्थर"

--Suryakant Tripathi 'Nirala'

Prapti

तुम्हें खोजता था मैं
तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिरा‌एँ हु‌ईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।
--सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

Koshish Karne Walon Ki Kabhi Har Nahi Hoti

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
--सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

Hath Kar Baitha Chand Ek Din

हठ कर बैठा चाँद एक दिन
हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
सन सन चलती हवा रात भर जाडे में मरता हूँ
ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ
आसमान का सफर और यह मौसम है जाडे का
न हो अगर तो ला दो मुझको कुर्ता ही भाडे का
बच्चे की सुन बात कहा माता ने अरे सलोने
कुशल करे भगवान लगे मत तुझको जादू टोने
जाडे की तो बात ठीक है पर मै तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ
कभी एक अंगुल भर चौडा कभी एक फुट मोटा
बडा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा
घटता बढता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पडता है
अब तू ही यह बता नाप तेरा किस रोज़ लिवायें?
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आयें?

--रामधीर सिंह दिनकर

Apr 10, 2012

Ye Prem Pratipal Sakuchaye

भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए

मौन आवरण मे सिमटा

ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये

Jan 21, 2012

Kya Jaag Rahi Ho Tum Bhi....

क्या जाग रही होगी तुम भी?

क्या जाग रही होगी तुम भी?
निष्ठुर-सी आधी रात प्रिये!
अपना यह व्यापक अंधकार,
मेरे सूने-से मानस में, बरबस भर देतीं बार-बार;
मेरी पीड़ाएँ एक-एक, हैं बदल रहीं करवटें विकल;
किस आशंका की विसुध आह!
इन सपनों को कर गई पार
मैं बेचैनी में तड़प रहा;
क्या जाग रही होगी तुम भी?

अपने सुख-दुख से पीड़ित जग, निश्चिंत पड़ा है शयित-शांत,
मैं अपने सुख-दुख को तुममें, हूँ ढूँढ रहा विक्षिप्त-भ्रांत;
यदि एक साँस बन उड़ सकता, यदि हो सकता वैसा अदृश्य
यदि सुमुखि तुम्हारे सिरहाने, मैं आ सकता आकुल अशांत

पर नहीं, बँधा सीमाओं से, मैं सिसक रहा हूँ मौन विवश;
मैं पूछ रहा हूँ बस इतना- भर कर नयनों में सजल याद,
क्या जाग रही होगी तुम भी?

-- भगवती चरण वर्मा

Jan 20, 2012

Jindagi

क्यों  कहते  हो..


क्यों  कहते  हो  मेरे  साथ  कुछ  भी  अच्छा  नहीं  होता,
सच  ये  है  की  जैसा  चाहो  वैसा  नहीं  होता,
कोई  सह  लेता  है,  कोई  कह  लेता  है,
क्योंकि  गम  कभी  ज़िन्दगी  से  बढ़कर  नहीं  होता..
आज  अपनों ने  ही  सिखा  दिया  हमे,
यहाँ  ठोकर  देने  वाला  हर  एक पत्थर  नहीं  होता,
क्यूँ  ज़िन्दगी  की  मुश्किलों  से  हारे  बैठे  हो,
इसके  बिना  कोई  मंजिल  कोई  सफ़र  नहीं  होता..
कोई  तेरे  साथ  नहीं  है  तो  भी  गम  न  कर,
क्यूंकि  'खुद'  से  बढ़कर  दुनिया  में  कोई  हमसफ़र  नहीं  होता...

--Vijay Negi