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Aug 22, 2011

Aag Jalni Chahiye

आग जलनी चाहिए


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

-- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)

Sarfaroshi ki Tammana

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

करता नहीं क्यों दुसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफिल मैं है ।

रहबर राहे मौहब्बत रह न जाना राह में
लज्जत-ऐ-सेहरा नवर्दी दूरिये-मंजिल में है ।

यों खड़ा मौकतल में कातिल कह रहा है बार-बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफिल में है ।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है ।

खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मींद,
आशिकों का जमघट आज कूंचे-ऐ-कातिल में है ।

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है ।

-- Ram Prasad Bismil


रहबर - Guide
लज्जत - tasteful
नवर्दी - Battle
मौकतल - Place Where Executions Take Place, Place of Killing
मिल्लत - Nation, faith

Dreams

स्वप्न

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।

मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

-- Ramdhari SIngh Dinkar

Aag ki Bhikh

आग की भीख


धुँधली हुई दिशाएँ, छाने लगा कुहासा
कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँसा
कोई मुझे बता दे, क्या आज हो रहा है
मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज सो रहा है
दाता पुकार मेरी, संदीप्ति को जिला दे
बुझती हुई शिखा को संजीवनी पिला दे
प्यारे स्वदेश के हित अँगार माँगता हूँ
चढ़ती जवानियों का श्रृंगार मांगता हूँ

बेचैन हैं हवाएँ, सब ओर बेकली है
कोई नहीं बताता, किश्ती किधर चली है
मँझदार है, भँवर है या पास है किनारा?
यह नाश आ रहा है या सौभाग्य का सितारा?
आकाश पर अनल से लिख दे अदृष्ट मेरा
भगवान, इस तरी को भरमा न दे अँधेरा
तमवेधिनी किरण का संधान माँगता हूँ
ध्रुव की कठिन घड़ी में, पहचान माँगता हूँ

आगे पहाड़ को पा धारा रुकी हुई है
बलपुंज केसरी की ग्रीवा झुकी हुई है
अग्निस्फुलिंग रज का, बुझ डेर हो रहा है
है रो रही जवानी, अँधेर हो रहा है
निर्वाक है हिमालय, गंगा डरी हुई है
निस्तब्धता निशा की दिन में भरी हुई है
पंचास्यनाद भीषण, विकराल माँगता हूँ
जड़ताविनाश को फिर भूचाल माँगता हूँ

मन की बंधी उमंगें असहाय जल रही है
अरमान आरजू की लाशें निकल रही हैं
भीगी खुशी पलों में रातें गुज़ारते हैं
सोती वसुन्धरा जब तुझको पुकारते हैं
इनके लिये कहीं से निर्भीक तेज ला दे
पिघले हुए अनल का इनको अमृत पिला दे
उन्माद, बेकली का उत्थान माँगता हूँ
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ

आँसू भरे दृगों में चिनगारियाँ सजा दे
मेरे शमशान में आ श्रंगी जरा बजा दे
फिर एक तीर सीनों के आरपार कर दे
हिमशीत प्राण में फिर अंगार स्वच्छ भर दे
आमर्ष को जगाने वाली शिखा नयी दे
अनुभूतियाँ हृदय में दाता, अनलमयी दे
विष का सदा लहू में संचार माँगता हूँ
बेचैन जिन्दगी का मैं प्यार माँगता हूँ

ठहरी हुई तरी को ठोकर लगा चला दे
जो राह हो हमारी उसपर दिया जला दे
गति में प्रभंजनों का आवेग फिर सबल दे
इस जाँच की घड़ी में निष्ठा कड़ी, अचल दे
हम दे चुके लहु हैं, तू देवता विभा दे
अपने अनलविशिख से आकाश जगमगा दे
प्यारे स्वदेश के हित वरदान माँगता हूँ
तेरी दया विपद् में भगवान माँगता हूँ

-- रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)

Apne hone par mujhko yakeen aa gaya

बस मैं हूँ

पिघले नीलम सा बहता ये समां,
नीली नीली सी खामोशियाँ ,
न कहीं है ज़मीन न कहीं आसमान,
सरसराती हुई टहनियां पत्तियाँ,
कह रहीं है बस एक तुम हो यहाँ ,
बस मैं हूँ ,
मेरी सांसें हैं और मेरी धडकनें ,
ऐसी गहराइयाँ , ऐसी तनहाइयाँ ,
और मैं… सिर्फ मैं.
अपने होने पर मुझको यकीन आ गया .

Dreams

ख्वाब

आँखों के पर्दों पे प्यारा सा जो था वो नज़ारा
धुआं सा बन कर उड़ गया अब ना रहा

बैठे थे हम तो ख्वाबों की छाओं के तले
छोड़ के उनको जाने कहाँ को चले

कहानी ख़त्म है या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये , या फिर रात होने को है

आने वाला वक़्त देगा पनाहें
या फिर से मिलेंगे दोराहे
खबर क्या , क्या पता

Aug 19, 2011

The Song of the Free

The Song of the Free

The wounded snake its hood unfurls,
The flame stirred up doth blaze,
The desert air resounds the calls
Of heart-struck lion's rage.

The cloud puts forth it deluge strength
When lightning cleaves its breast,
When the soul is stirred to its in most depth
Great ones unfold their best.

Let eyes grow dim and heart grow faint,
And friendship fail and love betray,
Let Fate its hundred horrors send,
And clotted darkness block the way.

All nature wear one angry frown,
To crush you out - still know, my soul,
You are Divine. March on and on,
Nor right nor left but to the goal.

Nor angel I, nor man, nor brute,
Nor body, mind, nor he nor she,
The books do stop in wonder mute
To tell my nature; I am He.

Before the sun, the moon, the earth,
Before the stars or comets free,
Before e'en time has had its birth,
I was, I am, and I will be.

The beauteous earth, the glorious sun,
The calm sweet moon, the spangled sky,
Causation's law do make them run;
They live in bonds, in bonds they die.

And mind its mantle dreamy net
Cast o'er them all and holds them fast.
In warp and woof of thought are set,
Earth, hells, and heavens, or worst or best.

Know these are but the outer crust -
All space and time, all effect, cause.
I am beyond all sense, all thoughts,
The witness of the universe.

Not two nor many, 'tis but one,
And thus in me all me's I have;
I cannot hate, I cannot shun
Myself from me, I can but love.

From dreams awake, from bonds be free,
Be not afraid. This mystery,
My shadow, cannot frighten me,
Know once for all that I am He.


-- Swami Vivekananda written in 1895

Aug 14, 2011

Leek Par Woh Chale


लीक पर वे चलें

लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं

साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं

शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़;
हिलती क्षितिज की झालरें
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं ।

लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।

--सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)

Subhash chandra Bose


सुभाष चन्द्र बोस

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, "स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है"

यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"

हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, "इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!"

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।


--श्री गोपाल दास व्यास जी

Bade Dinon Ke Baad


बड़े दिनों के बाद


बड़े दिनों के बाद आज
सूरज से पहले जगी,
बड़े दिनों के बाद सुबह की
ठंढी हवा मुझपर लगी।

बड़े दिनों के बाद पाया
मन पर कोई बोझ नहीं,
बड़े दिनों के बाद उठकर
सुबह नयी-नयी सी लगी।

बड़े दिनों के बाद दिन के
शुरुआत की उमंग जगी,
बड़े दिनों के बाद मन में
पंख से हैं लगे कहीं।

बड़े दिनों के बाद आज
मन में एक कविता उठी,
बड़े दिनों के बाद आज,
कविता काग़ज़ पर लिखी।


Man Kyon Na Tu Khush Hota Re


मन क्यों ना तू खुश होता रे

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

जब थीं दिल में उमंगें जागी,
जब सपने नए मिले थे सारे,
कितनी मन्नतें तब माँगी,
कितने देखे टूटते तारे।

अब जब झोली में हैं आए,
क्यों है तू यों थका-थका रे।
रस्ते का क्यों दर्द सताए,
सामने मंज़िल बाँह पसारे।

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

--

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

मंज़िल क्यों वैसी नहीं लगती,
जैसी थी सपनों में भाती,
जो भी पीछे छोड़ आया हूँ,
अलग ये उससे नहीं ज़रा सी।

प्रश्न है खुद से जिसको ढूँढ़ा
क्या वो कोई मरीचिका थी?
और उसे सब कुछ दे डाला
बची है बस ये राख चिता की।

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

Ek Aashirvad


एक आशीर्वाद

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

-- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)


Aag Jalti Rahe


आग जलती रहे

एक तीखी आँच ने
इस जन्म का हर पल छुआ,
आता हुआ दिन छुआ
हाथों से गुजरता कल छुआ
हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा,
फूल-पत्ती, फल छुआ
जो मुझे छुने चली

हर उस हवा का आँचल छुआ
... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछुता
आग के संपर्क से
दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में
मैं उबलता रहा पानी-सा
परे हर तर्क से
एक चौथाई उमर
यों खौलते बीती बिना अवकाश
सुख कहाँ
यों भाप बन-बन कर चुका,
रीता, भटकता
छानता आकाश
आह! कैसा कठिन
... कैसा पोच मेरा भाग!
आग चारों और मेरे
आग केवल भाग!

सुख नहीं यों खौलने में सुख नहीं कोई,
पर अभी जागी नहीं वह चेतना सोई,
वह, समय की प्रतीक्षा में है, जगेगी आप
ज्यों कि लहराती हुई ढकने उठाती भाप!

अभी तो यह आग जलती रहे, जलती रहे
जिंदगी यों ही कड़ाहों में उबलती रहे ।


--दुष्यंत कुमार (Dushyant Kumar)


Gaalib

ख्वाहिशें


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले

मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले

हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले

हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले

खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले

--
चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher

--मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib)

Chhoti-Chhoti Chhitrai Yaadein

छोटी-छोटी छितराई यादें

छोटी-छोटी छितराई यादें…. बिछी पड़ी है लम्हों की लॉन पर .
नंगे पैर उनपे चलते-चलते इतनी दूर आ
गए हैं, की अब भूल गए है जूते कहाँ उतारे थे
..
एडी कोमल थी जब आये थे,
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी.. और नाज़ुक ही रहेगी
..
इन खट्टी-मीठी यादों की शरारत जब तक इन्हें गुदगुदाती रहेगी..
सच.. भूल गए है जूते कहाँ उतारे थे
..
पर लगता है की अब उनकी ज़रूरत नहीं..!!

Main Kya Sochta Hun

मैं क्या सोचता हूँ

जो लहरों से आगे नज़र देख पाती तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ,
वो आवाज़ तुमको भी जो भेद जाती तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ.
ज़िद का तुम्हारे जो पर्दा सरकता तो खिडकियों से आगे भी तुम देख पाते,
आँखों से आदतों की जो पलकें हटाते तो तुम जान लेते मैं क्या सोचता हूँ.

मेरी तरह खुद पर होता ज़रा भरोसा तो कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते,
रंग मेरी आँखों का बाँट-ते ज़रा सा तोह कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते,
नशा आसमान का जो चूमता तुम्हे भी, हसरतें तुम्हारी नया जन्म पातीं ,
खुद दुसरे जनम में मेरी उड़ान छूने कुछ दूर तुम भी साथ-साथ आते.

Himalay

हिमालय

युग युग से है अपने पथ पर
देखो कैसा खड़ा हिमालय!
डिगता कभी न अपने प्रण से
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!

जो जो भी बाधायें आईं
उन सब से ही लड़ा हिमालय,
इसीलिए तो दुनिया भर में
हुआ सभी से बड़ा हिमालय!

अगर न करता काम कभी कुछ
रहता हरदम पड़ा हिमालय
तो भारत के शीश चमकता
नहीं मुकुट–सा जड़ा हिमालय!

खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आँधी पानी में,
खड़े रहो अपने पथ पर
सब कठिनाई तूफानी में!

डिगो न अपने प्रण से तो ––
सब कुछ पा सकते हो प्यारे!
तुम भी ऊँचे हो सकते हो
छू सकते नभ के तारे!!

अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में!

--सोहनलाल द्विवेदी

Zinda ho Tum

जिंदा हो तुम

दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो,तो जिंदा हो तुम
नज़र में ख़्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो ,तो जिंदा हो तुम
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहना सीखो
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समां देखे निगाहें
जो अपनी आँखों में हैरानिया लेके चल रहे हो ,तो जिंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबिया लेके चल रहे हो ,तो जिंदा हो तुम

Aug 6, 2011

Dil aakhir tu kyun rota hai

दिल आखिर तू क्यूँ रोता है

जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब ये तनहा दिल घबराया

हमने दिल को ये समझाया
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है
दुनिया में यूँही होता है

यह जो गहरे सन्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बांटे हैं
थोडा गम है सबका किस्सा
थोड़ी धुप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम है
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है

--जावेद अख्तर

Ik Bat Hothon Tak Hai Jo Aai Nahi

अहसास

इक बात होंठों तक है जो आई नहीं
बस आँखों से है झांकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी
कुछ लफ्ज़ हैं वो मांगती
जिनको पहनके होंठों तक आ जाए वो
आवाज़ की बाहों में बाहें डालके इठलाये वो
लेकिन जो ये इक बात है
अहसास ही अहसास है

खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती
खुशबू जो बे-आवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है
जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं
ये जाने कैसा राज़ है

--जावेद अख्तर

Aug 5, 2011

Sapna Hai Avi v

क्योंकि सपना है अभी भी

...क्योंकि सपना है अभी भी
इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएं
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...क्योंकि सपना है अभी भी!

तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा
विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा?)
किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी भी
....क्योंकि सपना है अभी भी!

तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
वह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो

और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर तड़प कर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है - दिशाएं, पहचान, कुंडल,कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी

इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएं
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धूंध धुमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
... क्योंकि सपना है अभी भी!

--धर्मवीर भारती

Hum Panchhi Unmukta Gagan ke

हम पंछी उन्मुक्त गगन के


हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले ।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने ।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती सॉंसों की डोरी ।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो ।

--शिवमंगल सिंह सुमन

Mujhko v tarkib Sikha yaar julahe

मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे


अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई

मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे

--गुलजार

Aug 4, 2011

लीला तिवानी
पश्चिम विहार, नई दिल्ली

तेरे जन्मदिन की शुभ वेला,
लगा बहारों का है मेला।
तेरी खुशियों से खुश होकर,
मौसम भी लगता अलबेला॥

चंदा बरसाता है चंदनिया,
चांदी-सा चमके हर कोना।
चमक-चमककर दमक-दमककर,
सूरज बरसाता है सोना।

छम-छम बूंदें बरस रही हैं,
सब कहते हैं आई वर्षा।
मेरा मत है शुभ अवसर पर,
परमपिता का मन भी हर्षा॥

महक रहा है उपवन सारा,
महक रहीं खुशियों से कलियां।
अमराई में कोयल गाए,
गूंज से गुंजित सारी गलियां॥

धरती लाई भेंट धैर्य की,
अंबर में आशा का मेला।
सागर ने मोती वारे हैं,
आई कितनी प्यारी वेला!

यूं ही जन्मदिन आता रहे,
हर वर्ष तुम्हें हर्षाता रहे।
जीवन हो मस्ती से पूरित,
गीत खुशी के गाता रहे॥
हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को
- Ram Prasad Bismil

(Note: It's not the complete poem. Few portions are missing here. Will try to get the complete poem soon.)

हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को
जीते जी हमने छुड़ाया उसी कशाने को
क्या ना था और बहाना कोई तडपाने को
आसमां क्या यही बाकी था सितम ढाने को
लाके गुरबत में जो रखा हमें तरसाने को

फिर ना गुलशन में हमें लायेगा शैयाद कभी
याद आयेगा किसे ये दिल-ऐ-नाशाद कभी
क्यों सुनेगा तु हमारी कोई फरियाद कभी
हम भी इस बाग में थे कैद से आजाद कभी
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को
.....
....

देश सेवा का ही बहता है लहु नस-नस में
हम तो खा बैंटे हैं चित्तोड़ के गढ़ की कसमें
सरफरोशी की अदा होती हैं यों ही रसमें
भाले-ऐ-खंजर से गले मिलाते हैं सब आपस में
बहानों, तैयार चिता में हो जल जाने को

....
...

कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
जिन्दगी भर को हमें भेज के काला पानी
मुँह में जलाद हुए जाते हैं छले पानी
अब के खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जाये कहीं ऊमर के पैमाने को

मयकदा किसका है ये जाम-ए-सुबु किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलु किसका है
जो बहे कौम के खातिर वो लहु किसका है
आसमां साफ बता दे तु अदु किसका है
क्यों नये रंग बदलता है तु तड़पाने को

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पुछो
मरने वालों से जरा लुत्फ-ए-शहादत पुछो
चश्म-ऐ-खुश्ताख से कुछ दीद की हसरत पुछो
कुश्त-ए-नाज से ठोकर की कयामत पुछो
सोज कहते हैं किसे पुछ लो परवाने को

नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलो
और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
कौंम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो
देखे कौन आता है ईर्शाथ बजा लाने को

-
हैफ - Alas!
कशाने - House
शैयाद - Hunter
नाशाद - Cheerless, Joyless
जाम-ए-सुबु - जाम से भरी सुराही
गुलु - neck
अदु - Enemy
हलावत - Relish, Deliciousness
चश्म-ऐ-खुश्ताख - audacious eyes
कुश्त-ए-नाज - one who is killed by flattery
सोज - Burning, Heat, Passion
ईर्शाथ - Order, Command

Din Kuchh Aise Gujarta Hai Koi

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई


दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।

--गुलजार

Sathi Sab Kuchh Sahna Hoga

साथी, सब कुछ सहना होगा!

मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

हम क्या हैं जगती के सर में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

--Harivansh Rai Bachchan

Aug 3, 2011

Love

हमन है इश्क मस्ताना


हमन है इश्क मस्ताना
हमन को होशियारी क्या
रहें आज़ाद या जग से
हमन दुनिया से यारी क्या

जो बिछुड़े हैं पियारे से
भटकते दर ब दर फिरते
हमारा यार है हम में
हमन को इंतजारी क्या

खलक सब नाम अनपे को
बहुत कर सर पटकता है
हमन गुरनाम सांचा है
हमन दुनिया से यारी क्या

न पल बिछुड़े पिया हमसे
न हम बिछुड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लगी है
हमन को बेकरारी क्या

कबीरा इश्क का माता
दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाजुक है
हमन सर बोझ भारी क्या

--कबीर

Adhuri Jindagi

अधूरी ज़िन्दगी

ऐ आसमान वाले ज़मीन पर उतर कर देख ,
होती है क्या जुदाई तू भी बिछड़ कर देख .. !!

लिखता है तू सब की तकदीर ऊपर बैठ कर ,
अपने हाथों की लकीरों से झगड़ कर देख ..!!

देता है सज़ा अपने "प्यार" के बिना जिंदा रहने की,
वो अधूरी ज़िन्दगी तू भी तो जी कर देख ..!!

ना आये जो सुकून दुनिया की किसी भी शह में,
अपने ही दर पे अपना सर झुका के तो देख ..!!

A Programmer's Poetry...

A Programmer's Poetry

I start my day by sitting on the chair,
Giving my monitor a hard, cold stare,
By the evening I'm done with another coding ,
... Oh,This has become routine so boring ,

Like all , I entered this field with great hope,
Jobs were many and there was plenty scope,
Dreams of joining the like of Gates,
And a chance to make money in the states

Thus, I entered the world of bytes,
Only to realize that reality bites,
'Coz a programmer's life isn't that cozy,
The bed of software isn't that all rosy.

Seeing the monitor all day n night,
Have taken the power off my eyesight,
Late to bed n late to rise,
Has made me wealthy,but not healthy and wise,

Working holidays,busy weekends,
No time for family, no time for friends,
My job steals most of the time,
Helplessly , I watch this crime.

Just for few bits of money,
I forego those moments with my honey,
When I should be out , having fun ,
I am telling computer whats to be done,

I hate you ,yet I can't get away,
'Coz, I need the money you pay,
God, to thee I pray,
If there be one – show me the way