Pages

Aug 22, 2011

Dreams

ख्वाब

आँखों के पर्दों पे प्यारा सा जो था वो नज़ारा
धुआं सा बन कर उड़ गया अब ना रहा

बैठे थे हम तो ख्वाबों की छाओं के तले
छोड़ के उनको जाने कहाँ को चले

कहानी ख़त्म है या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये , या फिर रात होने को है

आने वाला वक़्त देगा पनाहें
या फिर से मिलेंगे दोराहे
खबर क्या , क्या पता

No comments:

Post a Comment