ख्वाब
आँखों के पर्दों पे प्यारा सा जो था वो नज़ारा
धुआं सा बन कर उड़ गया अब ना रहा
बैठे थे हम तो ख्वाबों की छाओं के तले
छोड़ के उनको जाने कहाँ को चले
कहानी ख़त्म है या शुरुआत होने को है
सुबह नयी है ये , या फिर रात होने को है
आने वाला वक़्त देगा पनाहें
या फिर से मिलेंगे दोराहे
खबर क्या , क्या पता
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